झारखण्ड की जनजातियां – Tribes of Jharkhand

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Tribes of Jharkhand in Hindi – Useful for JPSC, JSSC and other State Exams

Table of Contents

जनजाति (Tribe):

Tribes of JHARKHAND
Tribes of JHARKHAND

जनजातियां वह मानव समुदाय हैं जो एक अलग निश्चित भू-भाग में निवास करती हैं और जिनकी एक अलग संस्कृति, रीति-रिवाज एवं अलग भाषा होती हैं तथा वे केवल अपने ही समुदाय में विवाह करते हैं। इन जनजातियों के अपने एक वंशज, पूर्वज तथा सामान्य देवी-देवता होते हैं। जनजाति वास्तव में भारत के आदिवासियों के लिए प्रयोग होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत किसी जाति को अनुसूचित जनजाति में अधिसूचित कर सकता है। और इनके लिए विशेष प्रावधान भी लागू किए गए हैं।

आदिवासी (Indigenous people):

दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘आदि’ और ‘वासी’ जिसका अर्थ है – मूल निवासी या वनवासी।

1. झारखण्ड में कुल अनुसूचित जनजातियों की संख्या:

झारखण्ड भारत का एक जनजातिय बहुल राज्य है। 15 नवंबर 2000 को यह प्रदेश भारत का 28वां राज्य बना। झारखण्ड राज्य के गठन के समय 30 जनजातियां ही अनुसुचित जनजाति में अधिसूचित थीं। फिर मार्च 2003 में दो और जनजातियां, कवर और कोल को क्रमशः 31वीं और 32वीं अनुसुचित जनजाति के रूप में शामिल किया गया। अतः, झारखण्ड में तत्काल कुल 32 अनुसुचित जनजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 24 जनजातियां प्रमुख श्रेणी में आती हैं और 8 आदिम जनजातियां के श्रेणी में आती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखण्ड में इन जनजातियों की जनसंख्या लगभग 86,45,042 है, जो झारखण्ड की कुल जनसंख्या का 26.2% है। आदिम जनजातियों की जनसंख्या लगभग 1,92,425 है जो प्रतिशत में 0.72% है। झारखण्ड राज्य की कुल जनजातियों की जनसंख्या का 91% ग्रामीण क्षेत्रों में और शेष 9% शहरी क्षेत्रों में निवास करती हैं।

2. झारखण्ड के कुल 32 जनजातियों के नाम:

  1. संथाल
  2. मुण्डा/पातर मुण्डा
  3. उरांव/धांगर
  4. हो
  5. असुर
  6. बिरहोर
  7. बिरजिया
  8. माल पहाड़िया
  9. सौरिया पहाड़िया
  10. बथुड़ी
  11. गोंड
  12. महली
  13. लोहरा
  14. किसान/नगेसिया
  15. बैगा
  16. बंजारा
  17. खरवार
  18. भुमिज
  19. बेदिया
  20. बिझिंया
  21. चेरो
  22. चिक-बड़ाईक
  23. खोंड
  24. गोडाइत
  25. खडिया
  26. करमाली
  27. परहइया
  28. कोरवा
  29. सबर
  30. कोरा
  31. कवर
  32. कोल

2.1. झारखण्ड की प्रमुख आदिम जनजातियां:

  1. असुर
  2. बिरहोर
  3. बिरजिया
  4. माल पहाड़िया
  5. सौरिया पहाड़िया
  6. परहइया
  7. कोरवा
  8. सबर (हिल खड़िया)

2.2. झारखण्ड की सामान्य अधिसूचित जनजातियां:

  1. संथाल
  2. मुण्डा/पातर मुण्डा
  3. उरांव/धांगर
  4. हो
  5. खरवार
  6. किसान/नगेसिया
  7. बैगा
  8. बंजारा
  9. बेदिया
  10. चिक-बड़ाईक
  11. लोहरा
  12. महली
  13. भुमिज
  14. बथुड़ी
  15. गोंड
  16. बिझिंया
  17. चेरो
  18. गोडाइत
  19. खडिया
  20. करमाली
  21. कोरा
  22. खोंड
  23. कवर
  24. कोल

2.3. सदान या गैर-आदिवासी कहलाई जाने वाली जनजातियां:

इन जनजातियों में से 7 अनुसुचित जनजातियां जो खुद को सदान (गैर-आदिवासी, मूलवासी) मानती हैं:

  1. बिरजिया
  2. चिक-बड़ाईक
  3. गोडाड़त
  4. किसान
  5. करमाली
  6. लोहरा
  7. महली।

2.4. उच्च हिंदू या खुद को राजपूत समझने वाली जनजातियां:

5 अनुसूचित जनजातियां जो अपने आप को उच्च हिन्दू (राजपूत) मानती हैं:

  1. बथुड़ी
  2. बेदिया
  3. बिझिंया
  4. चेरो
  5. खरवार।

3. वर्गीकरण

3.1. प्रजातिय समूह के आधार पर

  • झारखण्ड की जनजातियां तीन प्रजातियों में वर्गीकृत हैं:
  1. प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड
  2. ऑस्ट्रेलायड
  3. द्रविड़ियन
  • प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड में आने वाली जनजाति:
    संथाल, हो, लोहरा, खड़िया, भूमिज, माल पहाड़िया, सौरिया पहाड़िया, कोरा, परहइया, कोरवा, असुर, बिरहोर, सबर, कवर और कोल
  • ऑस्ट्रेलायड/प्री द्रविड़ियन में आने वाली जनजाति:
    मुण्डा, करमाली
  • द्रविड़ियन प्रजातियों में आने वाली जनजाति:
    उरांव, खरवार, महली, गौंड़, चेरो, चीक-बड़ाईक, गोडाइत, बिरजिया, बैगा, बथुड़ी, किसान, बिंझिया, और बेदिया।

3.2. भाषायी परिवार के आधार पर:

गियर्सन ने झारखण्ड की जनजातियों की भाषाओं को दो भागों में बाँटा है:

  1. ऑस्ट्रिक (मुंडारी)
  2. द्रविड़

झारखण्ड की अधिकांश जनजातियों की भाषा ऑस्ट्रिक (मुंडारी) भाषा परिवार में आती है, जबकि उरांव जनजाति की कुड़ुख भाषा और सौरिया पहाड़िया की माल्तो भाषा द्रविड़ के अंतर्गत आती है।

3.3. जीवन निर्वाह के आधार पर:

राज्य की जनजातियों को जीविका के आधार पर मुख्यतः चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. कृषक जनजाति (Settled agriculture):
    संथाल, मुण्डा, उरांव, हो, भूमिज
  2. शिकारी संग्रहकर्ता (Hunter gatherer):
    बिरहोर, कोरवा, खड़िया
  3. घुमंतू कृषक जनजाति (Shifting agriculture):
    सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया
  4. शिल्प जनजाति (Simple artisans):
    चिक-बड़ाईक, महली, लोहरा, करमाली

4. जनजातियों का विवाह पध्दति:

झारखण्ड की जनजातियाँ सामान्यत: अपने-अपने जातीय सीमाओं मे ही विवाह करते हैं लेकिन उनमें समगोत्रीय विवाह वर्जित है। सिंदूर लगाने की प्रथा सामान्य तौर पर सभी जनजातियों में है। जयमाला की प्रथा केवल खोंड जनजाति मे देखने को मिलता है। जनजातीय समुदाय प्राय: एकल विवाही होती है किंतु विशेष परिस्थिति मे दो या दो से अधिक विवाह की मान्यता है। विधवा विवाह एवं तलाक की प्रथा सामान्यत: सभी जनजातियों देखी जाती है। बाल विवाह का प्रचलन झारखण्ड की जनजातियों मे प्रायः नही देखने को मिलता है।

4.1 विवाह के प्रमुख प्रकार:

4.1.1. क्रय विवाह:

ऐसी विवाह पध्दति जिसके तहत वर पक्ष के द्वारा वधु पक्ष के माता-पिता या अभिभावक को धन प्रदान किया जाता है।

4.1.2. सेवा विवाह:

विवाह की एक ऐसी पध्दति जिसके अंतर्गत वर द्वारा विवाह से पूर्व अपने सास-ससुर की सेवा की जाती है।

4.1.3. हरण विवाह:

किसी लड़के द्वारा लड़की का अपहरण कर उससे विवाह करना हरण विवाह कहलाता है।

4.2.4. हठ विवाह:

ऐसा विवाह जिसमे लड़की जबरदस्ती अपने होने वाले पति के घर जाकर वास करती है।

4.1.5. विनिमय विवाह:

इस विवाह के अतंर्गत एक परिवार के लड़के तथा लड़की का विवाह दूसरे परिवार की लड़की तथा लड़के के साथ किया जाता है। इसे अदला-बदली विवाह या गोलट विवाह के नाम से भी जाना जाता है।

4.1.6. सह पलायन विवाह:

इस विवाह के तहत माता-पिता की अनुमति के बिना लड़का और लड़की भाग कर विवाह कर लेते हैं।

झारखण्ड की जनजातियां:

1. संथाल जनजाति (Santhal Tribe):

  1. सामान्य परिचय: जनसंख्या की दृष्टि से संथाल जनजाति झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति है जो झारखण्ड की कुल जनजाति का 35% प्रतिशत है। यह भारत की तीसरी (पहला-गोड़, दूसरा-भील) सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है।
  2. झारखण्ड में निवास स्थल: ये मुख्य रूप से संथाल परगना प्रमंडल एवं धनबाद, बोकारो, गिरिडीह,  हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम जिले में निवास करते हैं। राजमहल पहाड़ी क्षेत्र मे संथालो के निवास स्थान को दामिन-ए-कोह कहा जाता है। झारखण्ड मे प्रवेश से पूर्व इनका निवास स्थान पश्चिम बंगाल मे था जहाँ उन्हें साओतार के नाम से जाना जाता है।
  3. उल्लेखनीय लोग: द्रौपदी मुर्मू-भारत की वर्तमान राष्ट्रपति , शिबू सोरेन- राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री,  बाबूलाल मरांडी- राजनेता और पूर्व मुख्यमंत्री, रघुनाथ मुर्मू- ओलचिकि लिपि आविष्कारक, साहित्यकार, सिद्धू-कान्हू मुर्मू- स्वतंत्रता सेनानी, तिलका मांझी- स्वतंत्रता सेनानी
  4. संस्थापक पिता: संथालो के संस्थापक पिता लुगू बुरू को माना जाता है।
  5. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इनका संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय श्रेणी और ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषायी परिवार के निकट हैं।
  6. भाषा: संथाल जनजाति के लोग संथाली भाषा बोलते हैं और संथालो के इस भाषा को संसद के 92वां संविधान संशोधन, 2003 के तहत संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया है। संथाल विद्वान पंडित रघुनाथ मुर्मू ने इसे ओलचिकी लिपि नामक लिपि में लिखा है।
  7. वर्गीकरण: संथाल जनजाति 4 हड़ो (वर्गो) मे वर्गीकृत है: किस्कू हड़- राजा, सोरेन हड़- सिपाही, मरूड़ी हड़- कृषक, मुरमू हड़- पुजारी।
  8. युवागृह: संथाल जनजाति के युवागृह को घोटुल कहलाता है और घोटुल का संचालन जोगमाँझी करता है। युवागृह:(युवक-युवतियों के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था है, जहाँ युवक-युवतियों को गीत-संगीत, नृत्य, शिकार एवं रीति-रिवाजों व परम्पराओं का शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाता है।)
  9. गोत्र: इस जनजाति के गोत्रों की कुल संख्या 12 है।
  10. विवाह पध्दति: संथाल जनजाति के विवाह को बापला कहा जाता है। ये अंतर्विवाही जनजाति है और इनके बीच समगोत्रीय विवाह वर्जित है। इनका सर्वाधिक प्रचलित विवाह किरिंग बापला है जो माता-पिता द्वारा मध्यस्थ के माध्यम से किया जाता है। वधु-मूल्य पोन कहलाता है तथा इनमें बाल विवाह का प्रचलन नहीं है। इस जनजाति की कुछ और विवाह पद्धतियां है जैसे: किरिंग जबाई, इतुत, निर्बोलक, टुनकी दिपिल बापला, घर दी जमाई, सेवा विवाह आदि
  11. आर्थिक व्यवसाय: जीवन निर्वाह के दृष्टिकोण से देखा जाए तो संथाल जनजाति कृषि कार्य करते हैं और उनमे विभिन्न प्रकार के बर्तनों का चित्र बनाने की कला का प्रचलन है, जिसे काॅम्ब-कट चित्रकला कहा जाता है।
  12. प्रमुख पर्व: एरोक (बीजारोपण के अवसर पर), बा-परब/सरहुल (फूलों का त्योहार), सोहराय (जानवर धन) बाहा, माघसिम, सकरात आदि है।
  13. राजनीतिक शासन व्यवस्था: संथाल जनजाति की शासन व्यवस्था मांझी परगना शासन व्यवस्था कहलाती है। संथाल परगना में प्रत्येक गाँव की एक पंचायत होती है जिसका प्रधान मांझी कहलाता है जिसके पास प्रशासनिक एंव न्यायिक अधिकार होता है और मांझी की अनुपस्थिति में उसके कार्यों का संचालन पराणिक/प्रानीक करता है उसे उप-मांझी कहते हैं मांझी का सहायक जोगमाँझी कहलाता है। संथाल परगना में 15-20 गाँवों को मिलाकर एक परगना का निर्माण किया जाता है और उसका प्रमुख परगनैत या नायक कहलाता है। संथाल समाज मे यौन अपराध के लिए अपराधी को समाज से बहिष्कृत कर सबसे कठोर सजा  जिसे बिटलाहा कहते हैं।
  14. धार्मिक व्यवस्था: संथाल जनजाति के सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा या ठाकुर (सृष्टि का रचियता) हैं और मरांग बुरू उनका दूसरा प्रमुख देवता है। ग्राम प्रधान देवता जिसे जाहेर-एरा के नाम से जाना जाता है जिनका स्थान सखुआ या महुआ के पेड़ों के झुरमुट के बीच होता है जो जाहेर थान कहलाता है। संथाल जनजाति का धार्मिक प्रधान को नायके कहलाता है।
  15. कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
    • संथाल संगीत व नृत्य के बड़े ही प्रेमी होते हैं। बंसी, ढोल, नगाड़े, केन्दरा (वॉयलिन) इत्यादि इनके प्रमुख वाद्य यंत्र है।
    • जादोपटिया चित्रकला, भारत में संताल और भूमिज जनजाति की एक परंपरिक लोक चित्रकला शैली है, जो इस समाज के इतिहास और दर्शन को पूर्णतः अभिव्यक्त करने की क्षमता रखती है।
    • संथालों का प्रमुख तीर्थस्थल लुगुबुरु घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ है, जो बोकारो जिले के ललपनिया में स्थित है।

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2. उरांव जनजाति (Oraon Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखण्ड में संथाल जनजातियों के बाद उरांव जनजाति की जनसंख्या सबसे अधिक है। यह झारखण्ड की दूसरी और भारत की चौथी सबसे बड़ी जनसंख्या वाली जनजाति है। 2011 की जनगणना के अनुसार उरांवों की जनसंख्या राज्य की कुल जनजातीय जनसंख्या का 18.14% है। वे स्वयं को कुडुख (अर्थ-  मनुष्य) कहते हैं। इस जनजाति का मूल निवास दक्कन माना जाता है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: उरांव जनजाति अधिकांशत: राँची, पलामू, लातेहार, हजारीबाग, सिंहभूम क्षेत्रों में रहती है।
  3. उल्लेखनीय बात: 1915 मे शरतचंद्र राय ने ‘ द उरांव ऑफ छोटानागपुर ‘ नामक पुस्तक लिखी, जो इस जनजाति से जुड़ा प्रमुख पुस्तक है।
  4. प्रजातिय समूह और भाषायी परिवार: उरांव द्रविड़यन प्रजातीय समूह के अतंर्गत आते है, और उनका संबंध द्रविड़ भाषा परिवार से है।
  5. भाषा: इनकी भाषा “कुरुख” है और वे देवनागरी लिपि का उपयोग करते हैं।
  6. युवागृह: धुमकुड़िया उरांव जनजाति का युवागृह है।   इसमें 10-11 वर्ष की आयु में प्रवेश मिलती है, तथा विवाह होते ही इसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है। धुमकुड़िया में प्रवेश सरहुल र्पव के समय 3 वर्ष में एक बार मिलती है। इसमें युवकों के लिए जोंख-एड़पा और युवतियों के लिए पेल-एड़पा नामक अलग-अलग युवागृह है। जोंख एडपा को धांगर कड़िया भी कहा जाता है, जिसके मुखिया को धांगर या महतो तथा बड़की धांगरिन पेल-एड़पा की देखभाल करने वाली महिला को कहते हैं।
  7. गोत्र (किली): उरांव जनजाति के 14 प्रमुख गोत्र हैं।
  8. विवाह: उरांव जनजाति एक अंतर्विवाही जनजाति है और उनमें समगोत्रिय विवाह पर प्रतिबन्ध है। आयोजित विवाह का प्रचलन सर्वाधिक है, जिसमे वर पक्ष को वधु मूल्य देना पड़ता है जिसे, गोनोम कहते हैं।
  9. आर्थिक व्यवसाय: उरांव जनजाति का प्रमुख पेशा कृषि है। इन जनजातियों ने छोटानागपुर क्षेत्र में प्रवेश के बाद जंगलों को साफ़ करके कृषि करना प्रारंभ किया। ऐसे उरांव को “भुईहर” कहा गया, तथा वे अपनी भूमि को “भुईहर भूमि” कहते हैं। पसरा नामक एक विनिमय प्रथा जिसके अंतर्गत किसी को खेत जोतने, कोड़ने के लिए हल-बैल अथवा मेहनत से सहायता प्रदान की जाती है।
  10. प्रमुख र्पव: सरहुल/खद्दी(फूलों का पर्व), रोआपुना, जोमनवा और बतौली आदि। उरांव जनजाति के लोग प्रत्येक वर्ष वैशाख में विसू सेंदरा, फाल्गुन में फागु सेंदरा तथा वर्षा ऋतु के आरम्भ होने पर जेठ शिकार करते है।
  11. राजनीतिक शासन व्यव्स्था: उरांवों के परंपरागत शासन व्यवस्था को पड़हा/परहा पंचायत शासन व्यवस्था कहते हैं। उरांव जनजाति के गांव का पंचायत पंचोरा तथा गांव का प्रधान महतो (मुखिया) कहलाता है और महतो के सहयोगी को मांझी कहते है।
  12. धार्मिक व्यवस्था: सर्वप्रमुख देवता को धर्मेश या धर्मी कहते हैं जिन्हें प्रकाश देने वाले सूर्य के समान माना जाता है। अन्य देवी-देवताओ जैसे: पहाड़ देवता- मरांग बुरू, ग्राम देवता- ठाकुर देव और सीमांत देवता- डीहवार है। सरना इस जनजाति का मुख्य पूजा स्थल है। उनके धार्मिक प्रधान को पाहन कहते हैं और बैगा, पाहन का सहयोगी होता है जिसका काम ग्रामीण देवी-देवताओं को शांत करना है।
  13. कुछ महत्वपूर्ण तथ्य: उरांव जनजाति का सबसे लोकप्रिय नृत्य यदुर है और नृत्य स्थल अखाड़ा कहलाता है।

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3. मुण्डा जनजाति (Munda Tribe):

  1. सामान्य परिचय: मुण्डा झारखण्ड की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है जो राज्य के कुल जनजातीय जनसंख्या का 14.21% है। मुण्डा जनजाति को होड़ोको भी कहा जाता है।
  2. झारखण्ड में निवास स्थान: मुण्डा झारखण्ड राज्य के मूल निवासी हैं। राँची, हजारीबाग, गिरिडीह, पलामू, गुमला, सिंहभूम आदि इनका मुख्य निवास स्थल है।
  3. उल्लेखनीय लोग: बिरसा मुंडा एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक, अर्जुन मुंडा भारतीय राजनीतिज्ञ और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री
  4. प्रजातिय समूह एवं भाषा परिवार: प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातिय समूह तथा ऑस्ट्रो-एशियाटिक (मुण्डा भाषा परिवार) से इनका संबंध है।
  5. भाषा: मुण्डा जनजाति की भाषा मुंडारी/होड़ो जगर कहलाती है।
  6. युवागृह: इस जनजाति के युवागृह को गितिओड़ा कहते हैं।
  7. विवाह (अरण्डी): आयोजित विवाह इस जनजाति का सर्वाधिक प्रचलित है वधू मूल्य गोंनोंग टका (कुरी गोंनोंग) कहलाता है। मुंडा समाज में तलाक की प्रक्रिया साकमचारी के नाम से प्रसिद्ध है।
  8. आर्थिक व्यवस्था: जीविका चलाने लिए कृषि कार्य और पशुपालन करते हैं।
  9. प्रमुख र्पव/त्योहार: बाहा/सरहुल, बुरू र्पव, सोहराई (पशु पुजा हेतू), बतौली (छोटा सरहुल), करमा, जतरा, जोमनवा आदि है।
  10. राजनीतिक शासन व्यवस्था: मुंडा शासन व्यवस्था के अंतर्गत गांव का प्रधान मुंडा कहलाता है। मुंडा गांव के पंचायत को हातु और उसका प्रमुख हातु मुंडा या मुंडा कहलाता है। मुंडा शासन व्यवस्था का सर्वोच्च अंग परहा या पड़हा होता है जो 15 से 20 मुंडा गाँवों / पंचायतों को मिलाकर बनता है जिसका प्रमुख मानकी कहलाता है। इस समाज के पंचायतों की बैठकी अखड़ा में की जाती है। मुंडा एवं मानकी का पद वंशानुगत होता है।
  11. धार्मिक व्यवस्था: सिंगबोंगा मुंडा जनजाति के सर्व प्रमुख देवता हैं। पाहन द्वारा इस जनजाति का धार्मिक अनुष्ठान, पुजा स्थल सरना में संपन्न की जाती है। इनके अन्य देवी-देवता जैसे: हातु बोंगा (ग्राम देवता), देशाउली (गाँव की सबसे बड़ी देवी), और ओड़ाबोंगा (कुल देवता) हैं। मुंडा टोटम (इष्ट चिन्ह) की भी पूजा करते हैं। मुण्डा जनजाति की प्रसिद्ध लोककथा सोसो बोंगा है।

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4. हो जनजाति (Ho Tribe):

  1. सामान्य परिचय: जनसंख्या की दृष्टि से “हो” जनजाति झारखण्ड की चौथी प्रमुख जनजाति है, जो राज्य की कुल जनजातीय जनसंख्या का लगभग 10.73% है।
  2. झारखण्ड में निवास स्थल: इनका निवास स्थान मुख्यत: पूर्वी एवं पश्चिम सिंहभूम, तथा सरायकेला खरसावां है।
  3. प्रजातिय श्रेणी एवं भाषा परिवार: हो जनजाति प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातिय श्रेणी एवं ऑस्ट्रिक परिवार से है।
  4. भाषा: इनकी भाषा ‘ हो ‘ तथा लिपि बारङचिति है।
  5. युवागृह: हो जनजाति का युवागृह गोतिओड़ा कहलाता है।
  6. विवाह: हो समाज में मुख्य रूप से पांच प्रकार के विवाह देखे जाते हैं – आंदि, बापला, दिकू आंदि, ओपोरतिपि, राजी-खुशी तथा अनादर विवाह। आंदि विवाह इस जनजाति का प्रचलित है, वधु-मूल्य गोनोंग या गोनोम, पोन कहलाता है।
  7. आर्थिक व्यवस्था: खेती इनका मुख्य पेशा है। ये अपनी भूमि को तीन वर्गो में बांटते है: बेड़ो- उपजाऊ भूमि, वादी- धान उत्पादन के लिए तथा गोड़ा- कम उपजाऊ भूमि (मोटा अनाज हेतू)।
  8. प्रमुख पर्व: माघे, बाहा, होरो, बताउली, दमुराई, कोलोभ आदि।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: इनकी पारंपरिक शासन व्यवस्था को मुंडा मानकी शासन व्यवस्था कहते हैं तथा कैप्टन विलकिंग्सन द्वारा इस व्यवस्था को मान्यता दी गई थी। प्रशासनिक व्यवस्था के तहत गाँव का प्रधान मुंडा कहलाता है। इस जनजाति के 15-20 गांवों के एक समूह को पीड़ या पट्टा कहते हैं और पट्टा के प्रमुख को मानकी कहा जाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: हो जनजाति के प्रमुख देवता सिंगबोंगा हैं परंतु साथ ही कई और देवताओ की मान्यता है- पाहुई बोंगा (ग्राम देवता), मरांग बुरू (पहाड़ देवता),  दसाउली बोंगा( वर्षा देवता), ओटो बोडोम(पृथ्वी देवता)। इनका धार्मिक अनुष्ठान दिउरी (पुरोहित) द्वारा सम्पन्न  होता है। इनके रसोईघर के कोने में पूर्वजों का पवित्र स्थान होता है, जिसे अदिग कहते हैं।
  11. कुछ प्रमुख बातें: इनके गाँवो के बीच अखरा होता है जिसे “एटे तुरतुड” कहा जाता है, जहाँ नाच-गान, कथा-वार्ता, मनोरंजन आदि की व्यवस्था होती है। इली इनका प्रमुख पेय पदार्थ है जिसे देवी-देवताओ  पर भी चढ़ाया जाता है।

5. खरवार/खेरवार जनजाति (kharwar Tribe):

  1. सामान्य परिचय: खरवार झारखंड की एक लड़ाकू जनजाति मानी जाती है। इस जनजाति के लोग सत्य बोलने और सत्य के लिए अपना सबकुछ बलिदान करने के लिए प्रसिद्ध है। खरवार जनजाति उन जनजातियों मे शामिल है जो अपने को उच्च हिन्दू (राजपूत) कहते हैं।
  2. झारखण्ड में निवास स्थान: इनका मुख्य केंद्र झारखण्ड का पलामू प्रमंडल एवं राँची, हजारीबाग,चतरा आदि जिले हैं। पलामू तथा लातेहार जिला में इस जनजाति को “अठारह हजारी” के नाम जाना जाता है।
  3. प्रजातीय समूह/भाषायी परिवार: यह जनजाति द्रविड़ प्रजातीय समूह और ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार में आता है।
  4. भाषा: खेरवारी भाषा
  5. वर्गीकरण: खरवारों को 4 उपजातियों में बाँटा गया है: भोगता, माँझी, राउत, और महतो
  6. युवागृह: खरवार जनजाति मे युवागृह जैसी कोई संस्था नही होती।
  7. विवाह पध्दति: बाल विवाह खरवार समुदाय का श्रेष्ठ विवाह माना जाता है।
  8. आर्थिक व्यवसाय: खरवारों की मुख्य पेशा कृषि है। इसकी बड़ी आबादी खैर वृक्ष के छाल से कत्था बनाने के व्यवसाय में लगी है जो इनका परंपरागत पेशा है।
  9. प्रमुख पर्व: सरहुल, करम, नवाखानी, सोहराय, जितिया, दुर्गा पुजा, दिपावली, रामनवमी आदि इस जनजाति के प्रमुख र्पव है।
  10. राजनीतिक शासन व्यवस्था: खरवारों के ग्राम पंचायत को बैठकी तथा ग्राम पंचायत प्रधान को मुखिया कहते हैं। इस जनजाति के गांव की पंचायतो का समूह होता है जैसे- 4 गाँव की पंचायत: चट्टी, 5
  11. गाँव की पंचायत: पचौरा एवं 7 गाँव की पंचायत: सतौरा कहा जाता है।
  12. धार्मिक दृष्टिकोण: सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा हैं। धार्मिक अनुष्ठान ब्राह्मण/(पुरोहितों) द्वारा सम्पन्न कराए जाते हैं परंतु बलि चढाने के लिए पाहन या बैगा की मदद ली जाती है।

6. खड़िया जनजाति (Khadia Tribe):

  1. सामान्य परिचय: खड़खड़िया अर्थात पालकी ढ़ोने के कारण इस जनजाति को खड़िया जनजाति के नाम से जाना जाता है।
  2. झारखण्ड मे निवास स्थान: ये मुख्यत: राँची, हजारीबाग, गुमला, सिमडेगा और सिंहभूम जिले में पाए जाते हैं।
  3. प्रजातीय समूह/भाषायी परिवार: खड़िया प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय और मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) भाषा परिवार से है।
  4. भाषा: इनकी भाषा “खड़िया” मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) भाषा परिवार से है।
  5. वर्गीकरण: खड़िया समुदाय को तीन वर्गो मे वर्गीकृत किया गया है: दूध खड़िया, ढ़ेलकी खड़िया, पहाड़ी खड़िया।
  6. युवागृह: इस जनजाति का युवागृह  “गितिओ” कहलाता है।
  7. विवाह पध्दति: इस जनजाति में परस्पर विवाह वर्जित है लेकिन बहुविवाह का प्रचलन है। इनका सबसे अधिक प्रचलित विवाह “ओलोलदाय” है, जिसे असल विवाह भी कहा जाता है और वर पक्ष के द्वारा वधू पक्ष को देने वाला वधु-मूल्य “गिनिंग तह” कहलाता है।
  8. आर्थिक व्यवसाय: आजीविका का प्रमुख स्रोत कृषि तथा शिकार है।
  9. मुख्य पर्व/त्योहार: झारखण्ड के खड़िया जनजाति का प्रमुख पर्व जाडकोर पुजा, जंकारे सोहराई (बसंत के अवसर पर), जिमतड़ (गोशाला पूजा) पाटो सरना, बा बिडि र्पव, नयोदेम आदि है।
  10. राजनीतिक शासन व्यवस्था: खड़िया समुदाय का शासन व्यवस्था ढोलको सोहोर शासन व्यवस्था कहलाता है। इसके ग्राम प्रधान को महतो तथा ग्राम प्रधान सहायक को नेगी कहा जाता है।
  11. धार्मिक दृष्टिकोण: बेला भगवान या ठाकुर जिसे सूर्य का प्रतिरूप समझा गया है वे खड़िया जनजाति के प्रमुख देवता हैं। इस जनजाति में भगवान को गिरिंग बेरी या धर्मराजा कहते हैं। कालो या पाहन दूध खड़िया का जबकि दिहुरी व ढ़ेलकी पहाड़ी खड़िया का धार्मिक प्रधान कहलाता है।

7. लोहरा जनजाति (Lohra Tribe):

  1. सामान्य परिचय: लोहरा जनजाति असुर के वंशज माने जाते हैं। झारखण्ड की अनुसूचित जनजातियों में एक पेशेवर जनजाति है।
  2. झारखण्ड मे निवास स्थल: मुख्य निवास स्थान रांची, गुमला, सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां, पलामू, पश्चिम सिंहभूम,पूर्वी सिंहभूम, संथाल परगना में है।
  3. प्रजातीय समूह: प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह के अंतर्गत हैं।
  4. भाषा: वे सदानी या नागपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं।
  5. गोत्र: लोहरा जनजाति के 7 गोत्र (सोन, तुतली, तिर्की, धान, साठ, मगहिया एवं कछुआ) है।
  6. विवाह: समगोत्रीय विवाह निषिद्ध और एक ही विवाह का प्रचलन है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: इनका मुख्य पेशा लोहे का उपकरण बनाना है। ये मुख्यत कृषि कार्य से संबंधित लौह उपकरण बनाते हैं।
  8. प्रमुख र्पव: विश्वकर्मा पुजा, फगुआ, और सोहराय,सरहुल इस जनजाति समुदाय का प्रमुख त्योहार है।
  9. सर्वप्रमुख देवता: लोहरा जनजाति के सर्वप्रमुख देवता- विश्वकर्मा देव, सिंगबोंगा और देवी- धरती माई हैं।

8. भूमिज जनजाति (Bhumij Tribe):

  1. सामान्य परिचय: भूमिज का अर्थ है “जो मिट्टी से पैदा हुआ हो”, घने जंगलों में रहने के कारण मुगल काल में
  2. झारखण्ड में निवास स्थल: ये मुख्य रूप से राँची, हजारीबाग, धनबाद और सिंहभूम जिले में निवास करते हैं।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इनका संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड तथा ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से है।
  4. भाषा: ये भूमिज भाषा या होड़ो भाषा बोलते हैं और लिखने के लिए अल अनल लिपि का उपयोग करते हैं।
  5. गोत्र: इस जनजाति में कुल 4 गोत्र (पती, गुल्गु, जेयोला, एवं हेम्ब्रोम) है।
  6. विवाह: इस जनजाति में समगोत्रिय विवाह पर प्रतिबन्ध है और आयोजित विवाह सर्वाधिक प्रचलित विवाह है। इनके तलाक में पति द्वारा पते को फाड़कर टुकडा किया जाता है।
  7. आर्थिक व्यवस्था: कृषि इनका मुख्य पेशा है। यह जनजाति अच्छी काश्तकार है।
  8. प्रमुख त्योहार: करम पुजा, काली पुजा, ग्राम ठाकुर पुजा, गोराई ठाकुर पुजा आदि।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: इस जनजाति की जातीय पंचायत का मुखिया प्रधान कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: भूमिज समुदाय के प्रमुख देवता ग्राम ठाकुर व गोराई ठाकुर हैं। और इस जनजाति का धार्मिक प्रधान लाया कहलाता है। भूमिजों में श्राद्ध संस्कार को कमावत कहतें हैं।

9. महली जनजाति (Mahli Tribe):

  1. परिचय: झारखण्ड की शिल्पी जनजाति, जो बाँस की कला में दक्ष एवं प्रवीण मानी जाती है।
  2. झारखण्ड में निवास स्थल: रांची, सिमडेगा,  हजारीबाग, धनबाद, बोकारो, लोहरदगा आदि जिले में इनका सकेंद्रण है।
  3. उल्लेखनीय लोग: “नागपुरी का विद्यापति” महान गीतकार घासी राम इस जनजाति की उपशाखा से थे।
  4. प्रजातिय समूह एवं भाषा परिवार: प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातिय श्रेणी तथा इनका संबंध द्रविड़ परिवार से है।
  5. वर्गीकरण: पाँच उपजातियों में-
    • बाँस फोड़ महली – बाँस से जुड़ा कार्य
    • पातर महली – खेती और बाँस का उपकरण बनाना
    • सुलकी महली –  मजदूरी व खेती कार्य
    • ताँती महली –  पालकी ढोने वाले एवं बाजा बजाने का काम
    • महली मुंडा – मजदूरी और खेती कार्य।
  6. विवाह: इनका विवाह टोटमवादी वंशों में होता है, महली जनजाति में बाल विवाह प्रचलित है। पोन टका इस जनजाति का वधू मूल्य है।
  7. आर्थिक व्यवसथा: यह एक शिल्पी जनजाति है जो बांस कला में पारंगत है, बांस की टोकरी व ढ़ोल बनाना इनका प्रमुख कार्य है।
  8. प्रमुख र्पव: महली जनजाति के लोग पुरखों की पूजा ‘गोड़ाम साकी’ (बुढ़ा-बुढ़ी पर्व) के रूप में करते हैं। बंगरी, हरियरी, नवाखानी आदि पर्व मनाते हैं।
  9. धार्मिक व्यवस्था: इनका सर्वोच्च देवता सुरजी देवी हैं। सिल्ली क्षेत्र में महली द्वारा एक विशेष पूजा की जाती है जिसे उलूर पूजा कहते हैं।.

10. असुर जनजाति (Asur Tribe):

  1. परिचय: असुर झारखंड की अल्पसंख्यक आदिम जनजातियों में से एक है। इस जनजाति के लोग स्वंय को महिषासुर का वंशज मानते हैं। असुर जनजाति के लोग पहाड़ों और जंगलों में निवास करते हैं।
  2. निवास स्थल: झारखंड का पाट क्षेत्र जो गुमला,पलामू, लातेहार एवं  लोहरदगा जिले के अतंर्गत है।
  3. प्रजातिय समूह: प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड
  4. भाषा परिवार: ऑस्ट्रो-एशियाटिक और इनकी भाषा असुरी (मालेय) भाषा जो इस समुदाय से प्राय विलुप्त हो गई है (आसुरी भाषा यूनेस्को की एटलस ऑफ द वर्ल्डस लैंग्वेज इन डेंजर की सूची में शामिल है।)
  5. वर्गीकरण: 3 उपजातियों में – वीर असुर, बिरजा असुर, और अगरिया असुर
  6. विवाह: असुरों में ‘ईदी-मी’ (इदी-ताई-मा) विवाह की एक अनोखी विधि है। जिसके अंतर्गत लड़का-लड़की बिना शादी के रिति रिवाज पूरी किये बगैर पति-पत्नी की तरह रहने लगते हैं और बाद में शादी की रस्में पूरी की जाती है। कन्या-मूल्य (डाली टका) देने की प्रथा है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: लोहा गलाना इनका पारंपरिक पेशा था। वर्तमान में कृषि एवं पशुपालन का कार्य भी करते हैं।
  8. प्रमुख पर्व: सोहराई, सरहुल, फगुआ, कथदेली नवाखानी आदि इनके प्रमुख पर्व है।
  9. धार्मिक व्यवस्था: असुर जनजाति के सर्वश्रेष्ठ देवता सिंगबोंगा है। बैगा धार्मिक प्रधान और सुबारी उसका सहायक होता है। असुर समाज मे चामबंदी संस्कार का रिवाज है।

11. बंजारा जनजाति (Banjara Tribe):

  1. सामान्य परिचय: छोटे-छोटे गिरोह बनाकर घूमने वाली झारखंड की घुमक्कड़ एवं अल्पसंख्यक जनजाति जिसका अपना कोई गांव नहीं होता है।
  2. झारखण्ड में निवास स्थल: इनका मुख्य संकेन्द्रन स्थल संथाल परगना प्रमंडल के राजमहल और दुमका क्षेत्र में है।
  3. भाषा: इनकी भाषा लंबाड़ी कहलाती है।
  4. वर्गीकरण: बंजारा समाज 4 वर्गों में वर्गीकृत है –  चौहान, पवार, राठौर और उर्वा
  5. गोत्र: इस जनजाति में गोत्र प्रथा का प्रचलन नही है।
  6. विवाह: बंजारों में विधवा विवाह का प्रचलन सर्वाधिक है जिसे ‘ नियोग ‘ कहा जाता है और वधु-मूल्य हरजी कहलाता है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: पेशा के आधार पर बंजारा समाज 3 वर्गो में विभाजित है – पेशेवर वर्ग: मदारी, सपेरा, जड़ी-बुटी बेचने वाला, भिक्षुक वर्ग: गुलगुलिया एवं आपराधिक वर्ग: कंजर।
  8. प्रमुख र्पव: दिवाली, दशहरा, होली, जन्माष्टमी, नाग पंचमी, और रामनवमी इनके प्रमुख र्पव हैं।
  9. धार्मिक व्यवस्था: बनजारी देवी बंजारा समाज की प्रमुख देवी हैं। ये ‘आल्हा – उदल’ को अपना वीर पुरूष मानते हैं जिनकी लोकगाथा काफी लोकप्रिय है।
  10. महत्वपूर्ण तथ्य: नरसिंहा, ठपरा, चिंकारा, ढोल आदि उनके मुख्य वाद्य यंत्र हैं।
    • “दंड खेलना” बंजारा जनजाति का प्रचलित लोक नृत्य है।
    • राय की उपाधि इनमें काफी प्रचलित है।

12. बथुड़ी जनजाति (Bathudi Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति जो खुद को आदिवासी न मानकर बाहुबली मानती है जिसका शाब्दिक अर्थ है- क्षत्रिय। इन्हें भूईयां का पूर्वज माना जाता है।
  2. झारखण्ड में निवास स्थान: इनका मुख्य निवास सिंहभूम (ढालभूम क्षेत्र की पहाड़ी) एवं स्वर्णरेखा घाटी में पाई जाती है।
  3. प्रजातिय समूह: इनका संबंध द्रविड़ प्रजातिय समूह से है।
  4. भाषा: ये मुंडारी भाषा बोलते हैं।
  5. गोत्र: बथुड़ी समाज के 5 मुख्य गोत्र हैं।
  6. विवाह: बथुड़ी समाज में बहिर्गोत्रिय विवाह का प्रचलन है और आयोजित विवाह सर्वाधिक प्रचलित विवाह है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: आजीविका का साधन कृषि कार्य, वनोत्पादों का संग्रह और मजदूरी कार्य है।
  8. प्रमुख र्पव/त्योहार: रसपूर्णिमा, देहरी पूजा, सरोल पूजा, मकर संक्रांति, आषाढ़ी पूजा, वंदना पूजा आदि।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: इनका गांव का प्रमुख प्रधान कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: ग्राम देवता बथुड़ी समुदाय के सर्वश्रेष्ठ देवता होते हैं तथा उनके पुजारी को दिहुरी कहा जाता है।
  11. महत्वपूर्ण तथ्य: यह नृत्य संगीत के शौकीन होते हैं, इनके 4 प्रकार के मुख्य वाद्य-यंत्र होते हैं- मांदर, कहंगु, वंशी और झाल।
    • इस जनजाति की नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज की जैसी होती है
    • यह अपने मृत्तकों को सासन या मोराकुल में जलते हैं।

13. करमाली जनजाति (Karmali Tribe)

  1. सामान्य परिचय: झारखण्ड की अति प्राचीन जनजाति जो स्वंय को सदान मानते हैं। इस जनजाति के नातेदारी व्यवस्था हिंदू समाज के समान है।
  2. झारखंड में निवास स्थान: हजारीबाग, रांची, कोडरमा, गिरिडीह, चतरा, संथाल परगना, एवं सिंहभूम जिले में मुख्य संकेन्द्रन है।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इन्हें प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह और ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार में रखा गया है।
  4. भाषा: करमाली जनजाति की मातृभाषा खोरठा है किंतु बोल-चाल में ये ‘कुरमाली’ भाषा का प्रयोग करते हैं।
  5. गोत्र: इस जनजाति के 7 प्रमुख गोत्र है।
  6. विवाह: बहुविवाह का प्रचलन है, आयोजित विवाह, गोलट विवाह, विनिमय विवाह, उढरी विवाह, ढुकू विवाह आदि इस जनजाति के अनेक विवाह पद्धति है। इनमें वधु-मूल्य को पोन या हँठुआ कहते हैं।
  7. आर्थिक व्यवसाय: करमाली शिल्पकार होते हैं, लोहा गलाकर औजार बनाना इस जनजाति की परंपरागत पेशा है। यह अस्त्र-शास्त्र बनाने में निपुण माने जाते हैं।
  8. प्रमुख पर्व: टुसू पर्व (मीठा परब या बड़का परब),   सरहुल, करमा, सोहराई, नवाखानी आदि प्रमुख पर्व है।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: “मालिक” करमाली जनजाति का गाँव का प्रधान कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: सिंगबोंगा इनके सर्वोच्च देवता तथा दामोदर नदी को इस जनजाति द्वारा अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस जनजाति का पुजारी पाहन या नाया कहलाता है। इनमें ओझा भी पाया जाता है जिसके पवित्र स्थान को देउकरी कहलाता है।

14. बेदिया जनजाति (Bediya Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति जो अपने आप को उच्च हिंदू, वेद निवस या वेदवाणी मानते हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: रांची, हजारीबाग, रामगढ़ एवं बोकारो जिले में इनका मुख्य निवास स्थान है।
  3. प्रजातीय समूह: इनका संबंध द्रविड़ प्रजाति समूह से है।
  4. भाषा: इनकी अपनी कोई भाषा नहीं होती यह अपने निवास स्थान में प्रचलित भाषा का ही प्रयोग करते हैं।
  5. गोत्र: बेदिया जनजाति के 6 प्रमुख गोत्र हैं।
  6. विवाह: इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह वर्जित है तथा आयोजित विवाह इस जनजाति का सर्वाधिक प्रचलित विवाह है और इनमें वधू-मूल्य को डाली टका कहते हैं। विजातीय विवाह ठुकुर ठेनी कहलाता है जो इस जनजाति में सामाजिक रूप से निषेध है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: बेदिया का आर्थिक आधार कृषि है तथा इनकी आजीविका का अन्य साधन वन पदार्थ और मजदूरी है।
  8. प्रमुख पर्व: दिवाली, दशहरा, छठ, करम, सोहराई, आदि इस जनजाति के प्रमुख त्योहार हैं।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: बेदिया समुदाय के गांव का मुखिया प्रधान, महतो या ओहदार कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था:  इस जनजाति के प्रमुख देवता सूर्य हैं और इनमें सूर्या ही पूजा का प्रचलन है। इनका पूजा स्थल सरना कहलाता है।
  11. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • बेदिया जनजाति अपने नाम के साथ बेदिया व मांझी की उपाधि धारण करते हैं।
    • इनका नाच का मैदान अखड़ा कहलाता है।
    • इस जनजाति में पुरुषों का परंपरागत वस्त्र करेया, काच्छा, या भगवा जबकि महिलाओं का परंपरागत वस्त्र ठेठी और पाचन कहलाता है।

15. बिंझिया जनजाति ( Binjhia Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति जो अपने को विंध्य निवासी मानती है, इनका मुख्य निवास स्थल विंध्य पर्वत माना जाता है। बिंझिया जनजाति स्वयं को राजपूत मानते हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इनका मुख्य निवास स्थान रांची और सिमडेगा जिले में है।
  3. प्रजातीय समूह: इस जनजाति का संबंध द्रविड़ प्रजातीय समूह से है।
  4. भाषा: ये सदानी भाषा का प्रयोग करते हैं।
  5. युवागृह: युवागृह जैसी कोई संस्था नहीं होती।
  6. गोत्र: यह जनजाति 7 गोत्रों में विभाजित है जिसमें तीन  कुलुमर्थी, दादुल, और साहुल टोटमी गोत्र है।
  7. विवाह: इनमें बहिर्गोत्रिय विवाह प्रथा पाई जाती है और सगाई संघी विवाह, गुलैची विवाह, ढुकु विवाह, आयोजित विवाह आदि प्रचलित विवाह है। इनके वधु-मूल्य को डाली कटारी और तलाक को छोड़ा-छोड़ी के नाम से जाना जाता है।
  8. आर्थिक व्यवसाय: बिंझिया समाज का मुख्य पेशा कृषि है।
  9. प्रमुख पर्व: करम, सरहुल ,सोहराय, जगन्नाथ पूजा, होली इत्यादि प्रमुख पर्व हैं।
  10. धार्मिक व्यवस्था: इनके प्रमुख आराध्य विंध्यवासिनी देवी हैं तथा यह ग्राम देवी और चदरी देवी की भी पूजा करते हैं। इनका धार्मिक प्रधान बैगा कहलाता है।
  11. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • बिंदिया तुलसी के पौधे को पूजनीय मानते हैं।
    • इस जनजाति में हडिया पीना वर्जित है।

16. बिरजिया जनजाति (Birjia Tribe):

  1. सामान्य परिचय: बिरजिया झारखंड की एक लघु आदिम जनजाति है। बिरजिया का शाब्दिक अर्थ है- जंगल की मछली। यह लोग खुद को पुंडरिक नाग का वंशज मानते हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: यह मुख्य रूप से लातेहार, गढ़वा, गुमला, लोहरदगा जिले में स्थित है।
  3. प्रजातीय समूह: ये प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजाति से संबंध रखती हैं।
  4. वर्गीकरण: बिरजिया समाज 2 वर्गो में विभाजित है
    • सिंदूरिया – विवाह के दौरान सिंदूर का प्रयोग
    • तेलिया – विवाह के दौरान तेल का प्रयोग
  5. विवाह: बहुविवाह का प्रचलन है।
  6. आर्थिक व्यवसाय: बिरजिया समुदाय का मुख्य पेशा कृषि है। पाट क्षेत्र में बसे बिरजिया स्थानांतरित खेती करते है, यह काश्तकार भी है।
  7. प्रमुख पर्व: करम, सरहुल, अषाढी पूजा आदि इनके प्रमुख पर्व है।
  8. राजनीतिक शासन व्यवस्था: बिरजिया जनजाति पंचायत का प्रमुख बैगा कहलाता है।
  9. धार्मिक व्यवस्था: इस जनजाति के प्रमुख देवता सिंगबोंगा,मरांग बुरू है।

17. बिरहोर जनजाति (Birhor Tribe):

  1. सामान्य परिचय: बिरहोर झारखंड की विलुप्त होती जा रही अल्पसंख्यक आदिम जनजाति है। बिरहोर शब्द का अर्थ जंगल का आदमी। यह छोटे-छोटे समूह में  जंगलों में रहकर, घूम-फिर कर, कंद मूल, फल-फूल, आदि वन पदार्थ का संग्रह और शिकार कर अपना जीवन यापन करते हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: यह मुख्य रूप से रांची, रामगढ़, हजारीबाग, लोहरदगा, कोडरमा, सिमडेगा, गुमला, बोकारो,गिरिडीह और धनबाद आदि जिले में निवास करते हैं।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड समूह और ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार में इन्हें रखा गया है।
  4. भाषा: यह बिरहोरी भाषा बोलते हैं।
  5. युवागृह: बिरहोर जनजाति के युवागृह को गोतिओड़ा, गितिजोरी, या गत्योरा कहा जाता है। युवकों के युवागृह को डोंडा कांठा और युवतियों के युवागृह को डींडी कुंडी कहा जाता है।
  6. गोत्र: इस जनजाति के 13 प्रमुख गोत्र हैं।
  7. विवाह: बिरहोर जनजाति का सर्वाधिक प्रचलित विवाह क्रय विवाह (सदर बापाला) है।
  8. आर्थिक व्यवसाय: आजीविका का मुख्य साधन शिकार करना और खाद्य संग्रह करना है। अधिकांश बिरहोर “लूट लाओ, कूट खाओ” कि जिंदगी जीते हैं। जीवन यापन के दृष्टि से बिरहोर को दो उप वर्गों में बांटा जा सकता है- उथलू या भुलियास (घुमक्कड़) और जांघी या थानिया (अधिवासी)। ये लोग तांबे, काँसे और पीतल के कारीगरी में निपुण होते हैं।
  9. प्रमुख पर्व:  इस जनजाति द्वारा सोहराय, करमा, जितिया, नवाजोम और दलई इत्यादि पर्व मनाई जाती है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: सिंगबोंगा प्रमुख देवता है, इसके अलावा कांदो बोंगा, ओरा बोंगा, टण्डा बोंगा, होपराम  देवी आदि देवता है। नाये इनका धार्मिक प्रधान कहलाता है।
  11. महत्वपूर्ण तथ्य: इस जनजाति का प्रमुख वाद्य यंत्र तमक (नगाड़ा), तिरियो (बांस की बांसुरी) और तुमदा (मांदर या ढोल) है।डोंग, लांगरी और मुतकर बिरहोर जनजाति में तीन प्रकार के नृत्य पायी जाती है। बिरहोर की बस्ती को टंडा कहा जाता है।

18. चेरो जनजाति (Chero Tribe):

  1. सामान्य परिचय: चेरो जनजाति स्वयं को च्यवन ऋषि का वंशज मानते हैं। झारखंड की एकमात्र ऐसी जनजाति है जो जंगलों और पहाड़ों में निवास करना पसंद नहीं करती है। इस जनजाति द्वारा अपने आप को चौहान वंशी या चंद्रवंशी राजपूत कहा जाता है और ये लोग अपने नाम के अंत में सिंह लगते हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: यह मुख्य रूप से पलामू, लातेहार, रांची और हजारीबाग जिले में निवास करते हैं।
  3. प्रजातीय समूह: इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है।
  4. भाषा: यह सदानी भाषा बोलते हैं।
  5. वर्गीकरण: 2 उप समूहो में वर्गीकृत है-
    • बारह हजारी/बारह हजारिया – (श्रेष्ठ)
    • तेरह हजारी/वीर बंधिया – (निम्न)
  6. गोत्र: चेरो जनजाति का गोत्र पारी कहलाता है। इस जनजाति के 7 प्रमुख गोत्र पाए गए है।
  7. विवाह: चेरो समाज में विवाह के 2 मुख्य प्रकार है-
    • ढोला विवाह: लड़के के घर लड़की लाकर
    • चढ़ा विवाह: लड़की के घर बारात ले जाकर। इस जनजाति का वधु-मूल्य दस्तुरी कहलाता है।
  8. आर्थिक व्यवसाय: कृषि इस जनजाति का आजीविका का प्रमुख स्रोत है।
  9. प्रमुख पर्व: इस समुदाय द्वारा सोहराई, काली पुजा, होली आदि र्पव मनाए जाते है।
  10. राजनीतिक शासन व्यवस्था: चेरो जनजाति का गांव डीह और गांव का पंचायत भैयारी पंचायत कहलाता है। इनके पंचायत के प्रमुख को महतो/सभापति कहा जाता है।
  11. धार्मिक व्यवस्था: चेरो जनजाति के प्रमुख देवी-देवता शिव, पार्वती, रक्सेल/दरहा (ग्राम देवता) आदि है। इसका धार्मिक प्रधान बैगा और जादू-टोना करने वाला व्यक्ति माटी, ओझा या भगत कहलाता है।

19. बैगा जनजाति (Baiga Tribe):

  1. सामान्य परिचय: बैगा जनजाति झारखंड की एक उपेक्षित जनजाति है। बैगा का सामान्य अर्थ-पुरोहित होता है। इस जनजाति के रीति-रिवाज खरवार जनजाति के समान है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: पलामू प्रमंडल, राँची, हजारीबाग, सिंहभूम जिले में ये मुख्य रूप से निवास करते है।
  3. प्रजातीय समूह: यह द्रविड़ प्रजाति समूह के अंतर्गत आते हैं।
  4. विवाह: इस जनजाति का सबसे प्रचलित विवाह मंगनी विवाह है, इसके अलावा ‘लाम सेना’ (सेवा विवाह), पैठुल (ढुकु विवाह) तथा उठावा (राजी खुशी विवाह) भी प्रचलित है।
  5. आर्थिक व्यवसाय: इनका प्रमुख पेशा वैध कार्य और तंत्र मंत्र है। इसके साथ ही वे खाद्य संग्रह, शिकार और मजदूरी का काम भी करते हैं।
  6. प्रमुख पर्व: इनके वर्ष का प्रथम पर्व “चरेता” जो बच्चों को बाल भोज देकर मनाया जाता है। इस जनजाति द्वारा “रसनावा” नामक पर्व प्रत्येक 9 वर्ष पर एक बार मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त दशहरा, दिवाली, होली, सरहुल आदि पर्व भी इनमें प्रचलित है।
  7. राजनीतिक शासन व्यवस्था: बैगा जनजातीय पंचायत का मुखिया मुकद्दम कहलाता है।
  8. धार्मिक व्यवस्था:  बैगा जनजाति के प्रमुख देवता बड़ा देव है जिसका वास साल वृक्ष में माना जाता है। बाघ इस जनजाति की पवित्र पशु मानी जाती है।
  9. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • करमा नृत्य बैगा जनजाति का प्रधान नृत्य है। झरपुट, विमला आदि अन्य प्रमुख नृत्य है।
    • इस समुदाय में पुरुषों द्वारा ‘दशन’ या ‘शैला’ नृत्य और स्त्रियों द्वारा ‘रीना’ नृत्य भी किया जाता है।
    • इनमें संयुक्त परिवार की व्यवस्था पाई जाती है।

20. चीक बड़ाईक जनजाति (Chik Badaik Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की एक बुनकर जनजाति जिसे हाथ से बने कपड़ो का जनक कहा जाता है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इनका मुख्य निवास स्थान राँची, गुमला और सिमडेगा जिले में है।
  3. प्रजातीय समूह: ये द्रविड़ियन प्रजातिय समूह के अतंर्गत आते हैं।
  4. भाषा: इनकी भाषा नागपुरी है।
  5. वर्गीकरण: ये 2 वर्गो में विभाजित है –
    • बड़ गोहड़ी (बड़ जात)
    • छोट गोड़ही (छोट जात)
  6. गोत्र: इसके प्रमुख गोत्र है – तजना, खंभा एवं तनरिया।
  7. विवाह: समगोत्रीय विवाह निषिद्ध है और इनमें विधवा विवाह एवं पुनर्विवाह दोनो का प्रचलन है जो सगाई कहलाता है। इनके वधु-मूल्य को गोनोड़ कहा जाता है।
  8. आर्थिक व्यवसाय: इस समुदाय का प्रमुख पेशा कपड़ा बुनना है जिस कारण इन्हें हाथ से बुने कपड़ो का जनक भी कहा जाता है।
  9. प्रमुख पर्व: ये मुख्य पर्व के रूप में बड़ पहाड़ी, सुरजाही पुजा, सरहुल, करमा, नवाखानी, जितिया आदि मनाते हैं।
  10. राजनीतिक शासन व्यवस्था: इनमें पंचायत की व्यवस्था नही पाई जाती है।
  11. धार्मिक व्यवस्था: सिंगबोंगा प्रमुख देवता और देवी माई इस जनजाति की प्रमुख देवी हैं।
  12. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • इनमें पहले नर की बलि की प्रथा थी जिस पर अब रोक लगा दिया गया है।
    • अन्य जनजातियों के तरह ही इस जनजाति का नृत्य स्थल अखरा कहलाता है।
    • इनके मृत्तकों के शव को दफनाने के स्थान को मसना कहा जाता है।

21. गोंड जनजाति (Gond Tribe):

  1. सामान्य परिचय: गोंड जनजाति भारत की दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है जिनका मूल निवास मध्य प्रदेश और गोंडवाना क्षेत्र में है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: झारखंड में इस जनजाति का मुख्य निवास स्थल गुमला और सिमडेगा जिले में है।
  3. प्रजातीय समूह: इस जनजाति का संबंध द्रविड़ समूह है।
  4. भाषा: इस जनजाति की भाषा गोंडी है किंतु बोलचाल की भाषा में ये सादरी – नागपुरी भाषा का प्रयोग करते हैं।
  5. वर्गीकरण: यह जनजाति तीन विभिन्न वर्गों में विभाजित है –
    • राजगोंड – अभिजात्य वर्ग
    • धुरगोंड – सामान्य वर्ग
    • कमिया – खेतिहर मजदूर
  6. युवागृह: इस जनजाति का युवागृह घोटुल/गोटुल कहलाता है।
  7. गोत्र: गोंड जनजाति में प्रत्येक गोत्र द्वारा ‘फर्सापेन’ नामक कुल देवता की पूजा की जाती है।
  8. विवाह: दूध लौटावा विवाह गोंड जनजाति का सर्वाधिक प्रचलित विवाह है जिसके अंतर्गत चचेरी, फुफेरी, व ममेरी बहन से विवाह संपन्न की जाती है। इसके अलावा बहुविवाह, विधवा पुनर्विवाह का भी प्रचलन इस जनजाति में है।
  9. आर्थिक व्यवसाय: आजीविका का मुख्य साधन कृषि और वनोत्पाद है। ये पहले स्थानांतरित खेती करते थे जिसे दीपा या बेवार कहा जाता है।
  10. प्रमुख पर्व: फर्सा पेन बुढ़ादेव, मतिया, जितिया, सरहुल, सोहराय, करम आदि इनके प्रमुख पर्व हैं।
  11. राजनीतिक शासन व्यवस्था: गोंड पंचायत का मुखिया बैगा ही होता है, जिसे सयाना कहते हैं।
  12. धार्मिक व्यवस्था: ठाकुर देव (बूढ़ा देव), ठाकुर देई (धरती देवी), फर्सा पेन (कुल देवता) इत्यादि हैं। इस समाज का फर्सा पेन (कुल देवता) का पुजारी फरदंग या चारण और धार्मिक प्रधान बैगा कहलाता है।
  13. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • गोंड लोग संयुक्त परिवार को भाई बंद और संयुक्त परिवार के विस्तृत रूप को भाई बिरादरी कहते हैं।
    • उनके शव दफनाने वाले स्थल को मसना कहा जाता है।

22. गोड़ाइत जनजाति (Godait Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति जिसे गोड़ैत भी कहा जाता है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: यह मुख्य रूप से राँची, धनबाद, हजारीबाग, सिंहभूम, लोहरदगा और संथाल परगना में निवास करते हैं।
  3. प्रजातीय समूह: प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह के अंतर्गत आते हैं।
  4. भाषा: इनकी अपनी कोई भाषा नहीं है किन्तु ये सदानी बोलते हैं।
  5. गोत्र: इनके प्रमुख गोत्र टुडू, बाघ, इंदुआर, खलखो, टोप्पो आदि हैं।
  6. विवाह: इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह और विधवा विवाह वर्जित है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: वर्तमान समय में आजीविका का मुख्य साधन कृषि है और प्राचीन काल में ये लोग पहरेदारी का काम किया करते थे।
  8. प्रमुख पर्व: मति, पुरूबिया, देवी माय आदि इस जनजाति के प्रमुख त्योहार हैं।
  9. धार्मिक व्यवस्था: गोड़ाइत जनजाति का धार्मिक पुजारी बैगा कहलाता है। इस समुदाय में पुरुबिया (जनजातीय भूतात्मा) की पूजा प्रत्येक वर्ष बकरे की बलि देकर की जाती है।

23. खोंड जनजाति (Khond Tribe):

  1. सामान्य परिचय: खोंड झारखंड की अल्पसंख्यक जनजाति है। यह ओडिशा राज्य की पहाड़ियों और जंगलों के लोग है। खोंड को कोंड, कंध या कोंध भी कहते हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: यह जनजाति मुख्यत राँची, हजारीबाग, संथाल परगना एवं सिंहभूम जिले में पाई जाती है।
  3. प्रजातीय समूह: यह द्रविड़ प्रजाति समूह से संबंध रखती है।
  4. भाषा: खोंड कोंधी भाषा का प्रयोग करते हैं।
  5. वर्गीकरण: खोंड समुदाय तीन समूहों में वर्गीकृत है –
    • कुहिया : पहाड़ी भागों में निवास करती है
    • डोंगरिया: पहाड़ों के निचली ताल्लों में रहकर बागवानी करती है
    • देेशिया: समतल भूमि में रहकर कृषि करती है।
  6. विवाह: इस जनजाति के शादी-विवाह में वरमाला प्रथा का प्रचलन है।
  7. आर्थिक व्यवसाय:  आजीविका का मुख्य साधन खेती और मजदूरी है। इस जनजाति में झूम कृषि को पोड़चा कहा जाता है।
  8. प्रमुख पर्व: नबानंद, करमा, सरहुल, सोहराय, दशहरा, दिपावली आदि र्पव मनाए जाते हैं।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: खोंड समाज के गांव का मुखिया गोटिया कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: इस जनजाति का सर्वोच्च देवता बेलापून कहलाता है जिसे सूर्य का प्रतिरूप माना गया है। प्राचीन समय में खोंड में नरबलि की प्रथा पाई जाती थी जिसे मारियाह प्रथा कहा जाता था।

24. किसान जनजाति (Kishan Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की एक लघु अनुसूचित जनजाति जिसे सदनों ने नगेशर या नगेशिया की संज्ञा दी है। यह अपने आप को नागवंश का वंशज मानते हैं और डाल्टन द्वारा इन्हें पांडवों का वंशज माना गया है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: यह जनजाति मुख्य रूप से गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा एवं पलामू प्रमंडल में पाई जाती है।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इस जनजाति का संबंध द्रविड़ प्रजाति समूह और मुंडारी (ऑस्ट्रो-एशियाटिक) भाषा परिवार से है।
  4. भाषा: ये लोग मुख्यत: कुरुख भाषा, सुंदरगढ़ी, उड़िया और हिंदी बोलते हैं।
  5. वर्गीकरण: किसान जनजाति को विवाह की दृष्टि से दो भागों में वर्गीकृत किया गया है:
    • सिंदुरिया – विवाह के दौरान सिंदूर का प्रयोग
    • तेलिया – विवाह के दौरान तेल का प्रयोग
  6. विवाह: परीक्षा विवाह इस जनजाति का सर्वाधिक प्रचलित विवाह है और इनका वधु-मूल्य मूल्य डाली कहलाता है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: यह लोग परंपरागत रूप से कृषि कार्य करते हैं तथा इनके आर्थिक जीवन में जंगलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। ये जंगल से लकड़ी, शहद, कंदमूल, औषधीय वनस्पति आदि इकट्ठा करके स्थानीय बाजारों में बेचते हैं। यह पशुपालन भी करते हैं।
  8. प्रमुख पर्व: इस जनजाति का प्रमुख पर्व करमा, सोहराई, सरहुल, नवाखनी, फागुन और जितिया है।
  9. धार्मिक व्यवस्था: किसान जनजाति का सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा हैं और इसका धार्मिक प्रधान बैगा कहलाता है।

25. कोरा जनजाति (Kora Tribe):

  1. सामान्य परिचय: कोरा झारखंड की एक लघु जनजाति है। इस जनजाति को दांगर भी कहा जाता है। ऐसा मानना है कि कोरा शब्द की उत्पत्ति मुंडारी शब्द कोड़ा से हुआ है जिसका अर्थ- मिट्टी कोड़ना या काटना है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: हजारीबाग, सिंहभूम, बोकारो, धनबाद एवं संथाल परगना जिले में पाए जाते हैं।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: कोरा जनजाति प्रजातीय दृष्टि से प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड समूह से संबंधित हैं किंतु रिजले ने इन्हें द्रविड़ प्रजाति समूह में वर्गीकृत किया है।
  4. भाषा: इस जनजाति द्वारा ‘कोरा’ भाषा का प्रयोग किया जाता है।
  5. वर्गीकरण: रिजले ने इस जनजाति को 7 उपजातियों में वर्गीकृत किया गया जो इस प्रकार है- मालो, ढ़ालो, सिखरिया, बादमिया, सोनारेखा, गुरीबाबा, और झेटिया।
  6. युवागृह: इस समुदाय के युवागृह को गितिओड़ा कहा जाता है।
  7. गोत्र: इस जनजाति का गोत्र को गुष्टि कहलाता है। इसके प्रमुख गोत्र- कच (उच्च गोत्र), मेरोय, मागढू, चिखेल तथा बुटकोई (निम्न गोत्र) है।
  8. विवाह: इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह निषिद्ध है। इनका वधू मूल्य पोन कहलाता है।
  9. आर्थिक व्यवसाय: इनका मुख्य पेशा मिट्टी कोड़कर मजदूरी कामना है।
  10. प्रमुख पर्व: सवा लाख की पूजा, बागेश्वर पूजा,  नवाखानी, काली माई पूजा,सोहराय इत्यादि इस जनजाति के प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं।
  11. राजनीतिक शासन व्यवस्था: कोरा की एक परंपरागत ग्राम पंचायत होती है जिसका मुखिया महतो कहलाता है।
  12. धार्मिक व्यवस्था: इस जनजाति का पुजारी बैगा कहलाता है तथा इनका पूजा स्थल पिंगी, अखड़ा,  बोंगाथान, दादीथान आदि कहलाता है।
  13. महत्वपूर्ण तथ्य:   
    • कोरा अपने घर को ओड़ा कहते हैं।
    • कोरा समाज का मुख्य नृत्य खेमटा, गोलवारी, दोहरी एवं झिंगफुलिया है।
    • इस जनजाति में गोदना की प्रथा का प्रचलन है तथा गोदना को स्वर्ग या नरक में अपने संबंधियों को पहचानने के लिए एक आवश्यक चिन्ह माना जाता है।

26. माल पहाड़िया जनजाति (Mal Paharia Tribe):

  1. सामान्य परिचय: ‘माल पहाड़िया’ पहाड़िया जाति की दो प्रमुख शाखों में से एक है। यह एक आदिम जनजाति है। हीरालाल एवं रसेल के अनुसार, इस जनजाति के लोग पहाड़ों में रहने वाले सकरा जाति के वंशज हैं तथा बुचानन हैमिल्टन के अनुसार, इस जनजाति का संबंध मलेर से है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इनका मुख्यत संथाल परगना प्रमंडल के साहिबगंज जिला को छोड़कर अन्य सभी जिलों में तथा आंशिक रूप से सिंहभूम जिले में भी ये पाई जाती है।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातिय समूह से किंतु रिजले ने इन्हें द्रविड़ियन प्रजातिय समूह में रखा है तथा यह द्रविड़ भाषा परिवार के अंतर्गत आते हैं।
  4. भाषा: इस जनजाति की भाषा ‘मालतो’ कहलाती है।
  5. गोत्र: इसमें गोत्र व्यवस्था नहीं होती है।
  6. विवाह: माल पहाड़िया जनजाति में अंतर्विवाह की व्यवस्था पाई जाती है। इस जनजाति में विवाह योग्य कन्या ढूंढने वाले व्यक्ति को सिथूदार या सिथू कहा जाता है। इसमें वधू मूल्य (बंदी या पोन) के रूप में सूअर (सूअर सामाजिक और आर्थिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है) देने की प्रथा प्रचलित है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: इनके आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि, खाद्य संग्रहण और शिकार करना है। इस जनजाति द्वारा झूम खेती को कुरवा कहा जाता है। इनके द्वारा अपनी भूमि को 4 श्रेणियों में बांटा गया है- 
    • सेम भूमि – सर्वाधिक उपजाऊ
    • टिकुर भूमि – सबसे कम उपजाऊडेम भूमि – दोनो के बीच का
    • बाड़ी भूमि – सब्जी उगाने हेतू प्रयुक्त
  8. राजनीतिक शासन: इस जनजाति का गांव का मुखिया प्रधान/महतो/मांझी या ओहदार कहलाता है।
  9. धार्मिक व्यवस्था: माल पहाड़िया समुदाय के सर्वप्रमुख देवता सूर्य एवं धरती गोरासी गोंसाई (वसुमति गोंसाई या वीरू गोंसाई) हैं। पूर्वजों की पूजा माल पहाड़िया धर्म का केंद्र बिंदु है। इनका गांव का पुजारी देहरी कहलाता है।

27. सौरिया पहाड़िया (Sauria Paharia Tribe):

  1. सामान्य परिचय: ‘सौरिया पहाड़िया’ झारखण्ड की आदिम जनजाति है जो स्वंय के मलेर कहती है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इनका मुख्य संकेन्द्रन राजमहल पहाड़ी क्षेत्र के दामिन-ए-कोह में तथा संथाल परगना प्रमंडल में है।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इनका संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजाति समूह और द्रविड़ भाषा परिवार से है।
  4. भाषा: इस जनजाति की भाषा ‘मालतो’ कहलाती है।
  5. युवागृह: इस समुदाय का युवागृह कोड़वाह कहलाता है। इसमें युवक और युवतियों के लिए अलग-अलग युवागृह की व्यवस्था है। युवकों का युवागृह ‘मर्समक कोड़वाह’ तथा युवतियों का युवागृह ‘पेलमक कोड़वाह’ कहलाता है।
  6. विवाह: इस जनजाति में अंतर्विवाह निषिद्ध है तथा  पुनर्विवाह प्रथा का प्रचलन है और पोन इनका वधु-मूल्य कहलाता है। इनके विवाह को संपन्न कराने वाला व्यक्ति वेद सीढू कहलाता है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: सौरिया पहाड़िया जनजाति की अर्थ व्यवस्था कृषि तथा वनों पर आश्रित है। यह जनजाति पहाड़ियों पर जंगलों को काटकर कुरवा खेती (स्थानांतरित खेती) करते है।
  8. प्रमुख पर्व: इस जनजाति का मुख्य र्पव-त्यौहार फसलो पर आधारित रहता है जिसे आड़या कहते है। पुनु आड़या (बाजरा फसल कटाई के उपरांत), सलियानी पुजा, गांगी आड़या तथा ओसरा आड़या (घघरा फसल कटने पर) आदि त्यौहार मनाई जाती है।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: इस जनजाति का गांव का प्रमुख अधिकारी मुखिया/मांझी कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: रिजले के अनुसार, इस जनजाति का संबंध जीववाद से है। सौरिया पहाड़िया जनजाति के धार्मिक जीवन में पूर्वज पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। इस जनजाति के प्रमुख देवता लैहू गोंसाई (सृष्टिकर्ता) तथा अन्य देवता जरमात्रे गोंसाई (जन्म देव), दरमारे गोंसाई (सत्य देव), बेरू गोंसाई (सूर्य देवता) और विल्प गोंसाई (चाँद देवता) आदि हैं। इस समुदाय का धार्मिक प्रधान कांदो मांझी तथा उसका सहायक चालवे व कोतवार कहलाता है।
  11. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • बंसली (वंशी), बानम (वायलिन), खैलू (ढोल) इत्यादि सौरिया पहाड़िया जनजाति के प्रमुख वाद्य यंत्र है।
    • इस जनजाति के आवासों को अड्डा कहा जाता है।
    • पहाड़ी ढालों पर निवास करने वाले इस समुदाय के लोग खेत को जोत कोड़कर कृषि कार्य करते है, जिसे धामी या भीठा कहा जाता है।

28. परहिया जनजाति (Parhia Tribe):

  1. सामान्य परिचय: परहिया झारखंड की एक लघु आदिम जनजाति है। परहिया शब्द से यह भ्रम नहीं होना चाहिये की ये पहाड़िया, माल पहाड़िया या सौरिया पहाड़िया जैसे ही हैं, परहिया एक अलग जाति है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इनका मुख्य निवास पलामू प्रमंडल के अलावा रांची, चतरा, हजारीबाग, संथाल परगना क्षेत्र में भी है।
  3. प्रजातीय समूह: इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह से है लेकिन रिजले द्वारा इन्हें लघु द्रविड़ जनजाति कहा गया है।
  4. वर्गीकरण: इस जनजाति को नातेदारी की व्यवस्था के आधार पर 2 भागों में बांटा गया है-
    • धैयानिया – इसका संबंध जन्म से जुड़ा नातेदारी से है और इसके सदस्य को कुल कुटुंब कहते हैं।
    • सनाही – यह विवाह से जुड़ा संबंध होता है तथा इसका सदस्य हित कुटुंब कहलाता है।
  5. गोत्र: गोत्र का नाम और इसके सांस्कृतिक महत्व को परहिया जाति भूल चूकी है।
  6. विवाह: आयोजित विवाह सर्वाधिक प्रचलित विवाह है। वधू मूल्य डाली कहलाता है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: वर्तमान में इनकी आजीविका का मुख्य साधन बाँस की टोकरी और ढोल बनाना है। प्राचीन समय में ये स्थानांतरित खेती करते थे जिसे, बीयोडा या झूम खेती कहा जाता है।
  8. प्रमुख पर्व: करम, सरहुल, सोहराय, धरती पूजा आदि इस जनजाति के प्रमुख त्यौहार है।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: परहिया समाज का पंचायत जातिगोढ़ या भैयारी तथा पंचायत का प्रमुख प्रधान/महतो कहलाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: इस जनजाति में पूर्वजों की पूजा का विशेष महत्व है, जिसे मुआ पूजा कहते है। धरती सर्वोच्च देवता और दिहुरी इनका पुजारी होता है।
  11. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • साक्षी प्रथा इस जनजाति का प्रचलित प्रथा है।
    • इस समाज में कुराला (चूल्हे) से परिवार की गिनती की जाती है।
    • डाल्टन ने इन्हें किसी महान जनजाति का अवशेष माना है।

29. सबर जनजाति (Sabar Tribe):

  1. सामान्य परिचय: सबर झारखण्ड की एक अल्प संख्यक आदिम जनजाति है। इस जाति का इतिहास बहुत प्राचीन और गौरवशाली है। लाखों वर्ष पूर्व त्रेता युग में सबर जाति के अस्तित्व का उल्लेख मिलता है। ये मुख्य रूप से ओडिशा और पश्चिम बंगाल में रहते हैं। औपनिवेशिक काल के दौरान, आपराधिक जनजाति अधिनियम 1871 के अंतर्गत, इस जनजाति को आपराधिक जनजातियों की श्रेणी में शामिल किया गया था।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इस जाति का मुख्य निवास  सिंहभूम क्षेत्र इसके अलावा राँची, लोहरदगा, धनबाद, गिरिडीह और बोकारो आदि जिले में भी मिलती है।
  3. प्रजातीय समूह: मुंडा जातीय समूह से संबंधित इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह से है।
  4. वर्गीकरण: सबर को 3 प्रमुख शाखाओं में बांटा गया है –
    • झारा सबर – झारखण्ड में निवास करने वाला एकमात्र सबर जनजाति।
    • जायतापति – उड़ीसा में पाई जाने वाली
    • बासु – उड़ीसा में पाई जाने वाली
  5. विवाह: इस समुदाय में बहुविवाह का प्रचलन नही है। इनका वधु-मूल्य पोटे कहलाता है।
  6. आर्थिक व्यवसाय: ये कृषि, वनोत्पाद का संग्रहण और मजदूरी का कार्य करते हैं।
  7. प्रमुख पर्व: ये मनसा पुजा, काली पुजा और दुर्गा पुजा आदि पर्व मनाते हैं।
  8. राजनीतिक शासन व्यवस्था: सबर जनजातीय पंचायत का प्रमुख प्रधान कहलाता है।
  9. धार्मिक व्यवस्था: काली माता इस जनजाति की सर्वोच्च देवता हैं। इस समाज में मृत पुर्वजो की पुजा का विशेष महत्व है, जिसे मसीहमान या बूढ़ा-बूढ़ी कहा जाता है। इनका गाँव का पुजारी दिहुरी कहलाता है।
  10. महत्वपूर्ण तथ्य:
    • प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी को सबर जनजाति पर विशेष कार्य करने का श्रेय दिया जाता है।
    • सबर जनजाति का लोकप्रिय नृत्य डोमकच, पंता और साल्या है।

30. कोरवा जनजाति (Korwa Tribe):

  1. सामान्य परिचय: कोरवा झारखण्ड की एक आदिम जनजाति है। अत्यंत ही गरीब और सभी दृष्टि से पिछड़ी जाति ऐसा माना जाता है कि झारखण्ड में कोरवा मध्यप्रदेश से आए हैं। इस जनजाति को कोलेरियन जनजाति समूह का जनक माना जाता है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: ये मुख्यत पलामू प्रमंडल में पाई जाती है।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातिय समूह तथा ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है।
  4. वर्गीकरण: इस जनजाति की 2 उपजातियां है-
    • पहाड़ी कोरबा – पहाड़ो में निवास करने वाला
    • डीहा या डिहारिया कोरबा – नीचे गांव में रहने वाला
  5. गोत्र: इस जनजाति के 6 प्रमुख गोत्र है – हुटरटियें, कासी, सूइया, खरपो, कोकट, बुचुंग।
  6. विवाह: इसमें समगोत्रीय विवाह निषिद्ध है तथा एकल विवाह का प्रचलन पाया जाता है। चढ़के विवाह (कन्या के घर विवाह सम्पन्न) तथा डोला विवाह (वर के घर विवाह सम्पन्न) सर्वाधिक प्रचलित विवाह है। इस समाज में विधवा विवाह को मैयारी कहा जाता है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: ये शिकार, कृषि और पशुपालन का कार्य करते हैं। झारखण्ड सरकार द्वारा कोरवा को शिकार संग्रहकर्ता की श्रेणी में शामिल किया गया है। ये बियोडा (स्थानांतरित कृषि) भी करते हैं।
  8. प्रमुख पर्व: करम इस जनजाति का प्रमुख पर्व है तथा कोरबा लोग सर्प पूजा विशेष पूजा के रूप में करते हैं।
  9. धार्मिक व्यवस्था: इस जनजाति के प्रमुख देवता सिंगबोंगा हैं और इसका पुजारी बैगा कहलाता है। इस समाज के अन्य देवता रक्सेल (पशुरक्षक) तथा गमेल्ह (ग्रामरक्षक) हैं।

31. कवर जनजाति (Kawar Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की 31वीं जनजाति जिसे भारत सरकार ने 8 जनवरी 2003 को जनजातीय श्रेणी में शामिल किया है। कवर कौरवों के वंशज हैं।
  2. झारखंड में निवास स्थल: कवर झारखण्ड के गुमला, सिमडेगा, पलामू एवं लातेहार जिले पाए जाते है।
  3. प्रजातीय समूह: इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह से है।
  4. भाषा: इनकी भाषा कवराती या कवरासी है।
  5. गोत्र: इस जनजाति के 7 गोत्र है – शुकदेव, तुण्डक, वशिष्ठ, प्रहलाद, अभिआर्य, पराशर एवं विश्वामित्र।
  6. विवाह: इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह निषिद्ध है जिसे कुटमेती प्रथा कहा जाता है। क्रय विवाह सर्वाधिक प्रचलित विवाह है। इसके साथ-साथ जिया विवाह, ढुकु विवाह व सेवा विवाह का भी प्रचलन है। कवर जनजाति में वधु-मूल्य सुक – दाम कहलाता है। वधु-मूल्य रूप में नगद के अलावा 10 खंडी चावल दिया जाता है जिसे सुक-मोल कहा जाता है।
  7. आर्थिक व्यवसाय: कृषि इस जनजाति का मुख्य आर्थिक साधन है।
  8. प्रमुख पर्व: इस जनजाति द्वारा करम, हरेली, पितर-पुजा, जयाखनी, तीज आदि त्यौहार मनाई जाती है।
  9. राजनीतिक शासन व्यवस्था: कवर जनजाति के समाज में परंपरागत पंचायत होती है जिसका प्रमुख सयाना कहलाता है तथा इस पंचायत का संचालन प्रधान/पटेल द्वारा किया जाता है।
  10. धार्मिक व्यवस्था: सिंगबोंगा (सूरज) इनका सर्वप्रथम देवता है तथा ग्राम देवता को खूँट देवता कहते हैं। पाहन या बैगा इस जनजाति का पुजारी होता है।

32. कोल जनजाति (Kol Tribe):

  1. सामान्य परिचय: झारखंड की 32वीं जनजाति जिसे भारत सरकार द्वारा 2003 में जनजातीय श्रेणी में शामिल किया गया है।
  2. झारखंड में निवास स्थल: इस जनजाति का मुख्य निवास स्थान देवघर, गिरीडीह और दुमका जिले में है।
  3. प्रजातीय समूह एवं भाषा परिवार: इस जनजाति का संबंध प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातिय समूह से है तथा भाषा के दृष्टि से इनका संबंध कोलेरियन समूह से है।
  4. भाषा: इनकी भाषा कोल है।
  5. गोत्र: ये 12 गोत्रों में विभक्त है।
  6. विवाह: समगोत्रीय विवाह निषिद्ध है और इनमें वधू-मूल्य को पोटे कहते हैं।
  7. आर्थिक व्यवसाय: वर्तमान में यह कृषि कार्य करते हैं। प्राचीन समय में इनका परंपरागत पेशा लोहा गलाना एवं उसका सामान बनाना था।
  8. राजनीतिक शासन व्यवस्था: कोल के गांव का प्रधान मांझी कहलाता है।
  9. धार्मिक व्यवस्था: कोल जनजाति के प्रमुख देवता सिंगबोंगा है तथा इस जनजाति के लोग हिंदू धर्म से अधिक प्रभावित है जिस कारण बजरंगबली, शंकर भगवान, दुर्गा माता आदि की पूजा भी करते हैं।

33. पुरान जनजाति (Puran Tribe):

NOTE: पूरान झारखंड की 33वीं जनजाति है जिसे भारत सरकार ने 2022 में जनजाति की श्रेणी में शामिल किया है।

वर्ष 2014 में “राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग” के अध्यक्ष “रामेश्वरम उरांव” की अनुशंसा पर पूरान जनजाति को 8 अप्रैल 2022 को भारत के गजट में प्रकाशित किया गया तथा इसके पश्चात झारखंड सरकार द्वारा 2022 में पुरान जनजाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया।

  • पूरान जनजाति के लोग धनुर्विद्या में निपुण होते हैं।
  • प्रजातीय दृष्टिकोण से यह प्रोटो-ऑस्ट्रेलायड प्रजातीय समूह से संबंधित है।
  • इनकी भाषा “पुरान बोली” है जो हिंदी, उड़िया तथा पंचपरगनिया का मिश्रण है।
  • यह जनजाति 13 गोत्र या किली में विभक्त है।
  • इस जनजाति में समगोत्रीय विवाह वर्जित है तथा बर्हिविवाह का प्रचलन है।
  • इनका वधू मूल्य चलाऊ कहलाता है।
  • इस जनजाति की आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि है।
  • इस जनजाति का जातीय पंचायत “पुरान सभा” कहलाता है जिसका प्रमुख “महालदार या प्रधान” होता है।
  • धरम देवता (प्रमुख देवता) तथा बासुकी माता (प्रमुख देवी) और इनका धार्मिक प्रधान पाहन या देउरी कहलाता है।
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